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यह कहानी शेख चिल्ली की है, जो अपनी मूर्खता और अजीब हरकतों के लिए मशहूर है। एक दिन, अपनी माँ के कहने पर वह काम की तलाश में घर से निकलता है। रास्ते में, उसकी बेवकूफी भरी बातें सुनकर कुएँ में रहने वाली परियाँ डर जाती हैं और उसे एक जादुई घड़ा दे देती हैं। यह घड़ा उन्हें रातोंरात अमीर बना देता है। लेकिन क्या शेख चिल्ली अपनी इस दौलत को संभाल पाएगा? और क्या उसकी मूर्खता फिर से उसे मुसीबत में डालेगी या लोग उसकी इस अजीबोगरीब कहानी पर विश्वास करेंगे? पढ़िए यह मजेदार और हँसी से भरपूर शेख चिल्ली का किस्सा।
चलिए, अब पढ़ते हैं यह मनोरंजक और अनोखी कहानी...
शेख चिल्ली और जादुई घड़ा: मूर्खता या किस्मत?
एक छोटे से गाँव में, एक लड़का रहता था जिसका नाम 'शेख चिल्ली' था। शेख चिल्ली अपनी अनोखी हरकतों और बेवकूफी भरी बातों के लिए दूर-दूर तक मशहूर था। अगर गाँव में कोई भी अजब-गजब काम होता, तो सब यही कहते, "ज़रूर यह शेख चिल्ली का काम होगा।" वह पढ़ा-लिखा तो था नहीं, इसलिए दिनभर गाँव के बच्चों के साथ कंचे खेलता रहता और सपने देखता।
एक दिन, उसकी माँ, जो उसकी हरकतों से बहुत परेशान थीं, उससे बोलीं, "अरे शेख चिल्ली! अब तुम जवान हो गए हो। कुछ काम-धंधा करो, घर में हाथ बंटाओ। ऐसे दिनभर खाली बैठे रहने से काम नहीं चलेगा।"
माँ की डांट सुनकर शेख चिल्ली को बात समझ में आ गई। उसने फैसला किया कि वह काम की तलाश में शहर जाएगा। माँ ने बड़े प्यार से उसके लिए सात गरमा-गरम रोटियां बनाईं और पोटली में बाँधकर उसके हाथ में दे दीं।
"बेटा, ध्यान से जाना। रास्ते में कुछ खा लेना," माँ ने कहा।
शेख चिल्ली गाँव से बाहर निकला और चलते-चलते बहुत दूर आ गया। दोपहर का समय था और उसे बहुत भूख लगी थी। उसे रास्ते में एक पुराना, सूखा कुआँ दिखाई दिया। उसने सोचा, "चलो, यहीं बैठकर अपनी रोटियां खा लूँ।"
वह कुएँ की मुँडेर पर बैठ गया और अपनी रोटियां पोटली से बाहर निकालीं। अब उसने गिनना शुरू किया, "हम्म... एक रोटी खाऊँ... या दो खाऊँ... तीन खाऊँ... या क्या करूँ... सारी सातों रोटियाँ एक साथ खा जाऊँ?"
शेख चिल्ली इतनी जोर-जोर से बड़बड़ा रहा था कि उसकी आवाज कुएँ के अंदर गूँज उठी। अब, उस कुएँ में कोई साधारण जीव नहीं, बल्कि सात खूबसूरत परियाँ रहती थीं। उन्होंने शेख चिल्ली की अजीबोगरीब आवाज सुनी। "एक खाऊँ... दो खाऊँ... सातों खा जाऊँ...!"
परियों को लगा कि कोई भयानक राक्षस आ गया है, जो मेंढकों या कीड़े-मकोड़ों को नहीं, बल्कि पूरी-पूरी रोटियों को एक साथ खाता है। उन्हें लगा कि यह उन्हें भी खा जाएगा। वे डर के मारे कांपने लगीं।
सातों परियाँ डरते-डरते कुएँ से बाहर आईं। उनमें से सबसे सुंदर परी ने हिम्मत करके कहा, "अरे भाई! तुम कौन हो? हमें मत खाना। हम तुम्हें यह जादुई घड़ा देते हैं। तुम इससे जो कुछ भी मांगोगे, यह तुम्हें देगा। बस, हमें छोड़ दो।"
शेख चिल्ली ने परियों को देखा। उनकी सुंदरता देखकर वह हैरान रह गया। फिर उसने जादुई घड़े को देखा। उसकी आँखें चमक उठीं। "अच्छा! यह जादुई घड़ा है? ठीक है, मैं तुम्हें नहीं खाऊँगा," उसने कहा। (वैसे भी, शेख चिल्ली परियों को कैसे खा सकता था?)
शेख चिल्ली जादुई घड़ा और अपनी रोटियां लेकर वापस अपने गाँव की ओर चल पड़ा। वह अपनी इस अनमोल चीज़ के बारे में माँ को बताने के लिए बहुत उत्साहित था।
घर पहुँचते ही, उसने अपनी माँ को सारी बात बताई। माँ पहले तो उसकी बात सुनकर हँसी, "अरे, तू भी कैसी बेवकूफी भरी बातें करता है। परियां और जादुई घड़ा? लगता है भूख में कुछ ज्यादा ही सोच लिया।"
लेकिन शेख चिल्ली अपनी बात पर अड़ा रहा। "नहीं माँ! सच कह रहा हूँ। तुम इस घड़े से कुछ मांगो।"
माँ ने सोचा, 'चलो, इस मूर्ख को भी पता चल जाएगा कि यह सब बकवास है।' उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, "ठीक है, तो मुझे सोने के सिक्कों से भरा एक कमरा चाहिए।"
शेख चिल्ली ने घड़े से कहा, "घड़े भैया, मुझे सोने के सिक्कों से भरा एक कमरा चाहिए।"
और यह क्या! देखते ही देखते, उनका छोटा सा घर सोने के सिक्कों से भर गया। माँ की आँखें फटी की फटी रह गईं। वे रातोंरात मालामाल हो गए।
माँ की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने बाजार से ढेर सारे बताशे खरीदे और खुशी से घर के छप्पर पर चढ़ गईं। "शेख चिल्ली! नीचे आओ और इन बताशों को लूटो!" उन्होंने चिल्लाकर कहा और छत से बताशे बरसाने लगीं।
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शेख चिल्ली ने खूब बताशे लूटे और खाए।
पूरे मुहल्ले में यह खबर आग की तरह फैल गई कि शेख चिल्ली और उसकी माँ अचानक अमीर हो गए हैं। मुहल्लेवाले हैरान थे, "अरे, ये इतने गरीब थे, इनके पास इतनी दौलत कहाँ से आई?"
कुछ पड़ोसी जिज्ञासु होकर शेख चिल्ली के घर आए। "शेख चिल्ली, सुना है तुम बहुत अमीर हो गए हो? यह सब कैसे हुआ?" उन्होंने पूछा।
शेख चिल्ली ने बड़े गर्व से कहा, "हमारे पास एक जादुई घड़ा है। मैं उससे जो मांगता हूँ, वह देता है।"
पड़ोसियों ने उसकी माँ से घड़ा दिखाने को कहा। माँ को पता था कि अगर उन्होंने जादुई घड़ा दिखा दिया, तो लोग उसे छीनने की कोशिश करेंगे। इसलिए उन्होंने बात टालने की कोशिश की। "अरे, यह शेख चिल्ली फिर बकवास कर रहा है। मेरे पास कोई ऐसा घड़ा नहीं है।"
शेख चिल्ली अपनी माँ की बात सुनकर हैरान रह गया। "क्यों नहीं माँ? मैंने ही तो तुम्हें वो घड़ा दिया था! और याद है, उस दिन तुम छप्पर से बताशे भी बरसा रही थीं, जिन्हें मैं लूट रहा था?"
माँ ने पड़ोसियों की ओर देखा और हंसते हुए बोलीं, "सुना आप लोगों ने! भला छप्पर से कभी बताशे बरसते हैं? यह तो ऐसी मूर्खता की बातें करता ही रहता है। इसकी बातों पर ध्यान मत दो।"
मुहल्लेवाले भी हँसने लगे। "अरे, हम भी कैसे मूर्ख हैं, शेख चिल्ली की बात पर विश्वास कर लिया।" वे यह सोचते हुए चले गए कि शेख चिल्ली पागल हो गया है।
शेख चिल्ली यह सब सुनकर बहुत दुखी हुआ, लेकिन उसकी माँ समझदार थीं। उन्होंने जादुई घड़े की बात किसी को नहीं बताई और अपनी दौलत का समझदारी से इस्तेमाल किया। शेख चिल्ली अपनी मूर्खता भरी बातें करता रहा, लेकिन उसकी माँ की समझदारी ने उन्हें उस जादुई घड़े की वजह से मिली दौलत को बचाए रखा।
सीख (Moral of the Story)
यह कहानी हमें सिखाती है कि कभी-कभी मूर्खता भी किस्मत का दरवाजा खोल सकती है, लेकिन उस किस्मत को बनाए रखने के लिए बुद्धिमत्ता और गोपनीयता की बहुत आवश्यकता होती है। हमें अपनी खास चीजों का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए, क्योंकि लालची लोग उन्हें छीनने की कोशिश कर सकते हैं। साथ ही, हर बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए और हर चीज़ का प्रचार नहीं करना चाहिए।
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